किताब परिवहन: लाखों डकार जाते हैं साहब, बेसिक शिक्षा विभाग का मामला, शिक्षक होते हैं परेशान: बीएसए ने दिया यह स्पष्टीकरण

सोनभद्र। जिला बेसिक शिक्षा विभाग में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कभी किताब के नाम पर तो कभी किसी और मामले को लेकर परिषदीय स्कूल के शिक्षकों को हलकान किया जा रहा है। किताब परिवहन के नाम पर विभाग एक रूपए खर्च नहीं करता और धन डकार ले रहा है। इसका खामियाजा शिक्षकों को भुगतना पड़ रहा है।

जनपद के परिषदीय विद्यालयों में मौजूदा समय में किताबें भेजी जा रही है। जिले स्तर पर आने वाली लाखों किताबों के लिए कोई निश्चित गोदाम नहीं है। इन किताबों को मल्टी स्टोरी, अखाड़ा मोहाल व जोगियाबीर मंदिर स्थित विद्यालयों में रखा जाता है। शिक्षकों को मोबाइल के जरिए संदेश भेज दिया जाता है कि संबंधित स्कूल पर किताब पहुंच चुकी है और आकर ले जाए। शिक्षक बतायी गई तारिख को उक्त स्कूल पहुंच जाता है। शिक्षकों को ही किताबें निकालनी पड़ती है। जिसकी वजह समय तो नष्ट होता ही है। जिन विद्यालयों पर महज महिला शिक्षक है उनको जमकर दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है।

  स्कूल तक किताबों को ले जाने के लिए उन्हें वाहन तय कर हजारों रूपए खर्च करना पड़ता है। जबकि नियम यह है कि जिला स्तर पर किताब आने के बाद उसको ब्लाक भेजने की जिम्मेदारी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की है। ब्लाक पर किताब पहुंच जाए तो हर स्कूल पर छात्रों के हिसाब से किताबों को पहुंचाना खंड शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी है।

इसके लिए विभाग को लाखों रूपए धन भी आवंटित होता है, लेकिन इस जिले में किताबों के परिवहन के मामले में उल्टी गंगा बह रही है। सारी जिम्मेदारी शिक्षकों के कंधे पर डाल दी गई है। वह किताब भी निकाले और स्कूल तक ले जाने के लिए अपना धन तक खर्च करें। ऐसे में शिक्षकों के बीच नाराजगी बढ़ती जा रही है।

बोले बीएसए

सोनभद्र। जिला बेसिक शिक्षा | अधिकारी हरिवंश कुमार ने बताया कि ने उनका कार्यालय खुद उधार के भवन में संचालित हो रहा है। ऐसे में उनके पास ऐसा कोई गोदाम नहीं है जहां किताबें डंप की जा सके। यह जरूर है कि स्कूल तक किताबों को भेजने की जिम्मेदारी संबंधित अधिकारियों पर ही है लेकिन इस मद में बहुत कम में | धन आवंटित किया जाता है। जिसकी वजह से शिक्षकों को किताब ले जाने के लिए कहा जाता है।


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