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शिक्षकों की तनावपूर्ण ड्यूटी बन न जाए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लक्ष्य प्राप्ति में बाधक!


शिक्षकों की तनावपूर्ण ड्यूटी बन न जाए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लक्ष्य प्राप्ति में बाधक!

अधिकारियों द्वारा बेसिक स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लक्ष्य प्राप्ति की अति आतुरता और जल्दबाजी, लक्ष्य की ओर उन्मुख है या लक्ष्य से विमुख? इस प्रश्न पर गंभीरता पूर्वक विचार करने की जरूरत है।

शासन-प्रशासन द्वारा वर्तमान में चल रही शिक्षा गुणवत्ता सुधार गतिविधियां बेशक नेक नीयत से की जा रही हो परन्तु आदेश-निर्देशों, विभिन्न बैठकों, कार्यशालाओं की बढ़ती आवृत्ति से अधीनस्थ अधिकारियों, अन्य जिम्मेदार लोगों तथा शिक्षकों में उहापोह की स्थिति सी बनी हुई है। गुणवत्तापूर्ण और प्रभावी शिक्षण में शिक्षक की मुख्य भूमिका होती है।

वर्तमान आदेश-निर्देशों की बाढ़ में लगभग सभी शिक्षक इसी उलझन में हैं कि क्या -कहां कितना- कैसे शुरू करें, कहां-कैसे – किसको कितना जारी रखे और क्या -कब-कितना- कैसे समाप्त करें। शिक्षक स्वयं को किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में पा रहा है। शिक्षकों की यह मन:स्थिति उसके लिए शिक्षण एकाग्रता में न सिर्फ बाधक है अपितु शिक्षण उत्साह में भी नकारात्मक असर डाल रहा है।

शिक्षकों के लिए दिन-प्रतिदिन के घंटे-दर-घंटे आने वाले विभिन्न आदेश-निर्देशों में सामंजस्य बनाना भी कम चुनौतीपूर्ण कार्य नहीं है। कई बार यह देखा जाता है कि स्वयं जिम्मेदार अधिकारी का कोई एक आदेश-निर्देश उनके या अन्य अधिकारियों के पूर्व में जारी किसी अन्य आदेश के विरुद्ध या प्रतिकूल हो जाता है। इस विषम स्थिति में शिक्षकों के लिए नये- पुराने दोनों आदेश-निर्देश का अक्षरशः अनुपालन करना अव्यावहारिक/असंभव सा हो जाता है और शिक्षक किसी जवाबदेही में फंसने का तनाव लेकर ड्यूटी करने को बाध्य है।

निजी विद्यालयों के शैक्षिक गुणवत्ता को आधार मानक मानते हुए शासन-प्रशासन बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के त्वरित और जादुई परिणाम के प्रति जल्दबाजी में है। इस जल्दबाजी में बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के लिए विभिन्न कार्यक्रम, अभियान तथा योजनाओं पर एक साथ काम किया जा रहा है। उससे सम्बन्धी एक के बाद एक नये-नये लक्ष्य रखे जा रहे हैं। दिन-प्रतिदिन उससे सम्बन्धी आदेश-निर्देश धड़ाधड़ जारी किए जा रहे हैं।

प्रश्न यह है कि निजी विद्यालयों के शैक्षिक गुणवत्ता को मानक मानते हुए परिषदीय विद्यालयों में शैक्षिक गुणवत्ता को अत्यंत कम मान लेना और शैक्षिक गुणवत्ता सुधार के त्वरित और जादुई परिणाम के लिए व्याकुल हो जाना और इस व्याकुलता में एक के बाद एक आदेश-निर्देश जारी कर शिक्षकों पर अतिरिक्त तनाव डालना शैक्षिक गुणवत्ता सुधार के लिए अनुकूल है या प्रतिकूल।

कहीं ऐसा न हो कि हमारे प्रदेश की कक्षा 1 से 8 तक की प्राथमिक शिक्षा विभिन्न मिशन, विभिन्न मोबाइल ऐप, जागरूकता कार्यक्रम, विभिन्न अभियान, यूट्यूब सेशन, आनलाइन-आफलाइन प्रशिक्षण, आकस्मिक निरीक्षणों, सपोर्टिव सुपरविजन, विभिन्न टेक्निकल शब्दावलियों और उससे जुड़े कार्यक्रमों, दिन-प्रतिदिन के आदेश- निर्देशों, सूचनाओं के आदान-प्रदान में ही उलझ कर ही न रह जाए।

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