पुरानी पेंशन बहाली के व्यर्थ विरोध की असल वजह

राष्ट्रीय प्रेस ने छापा है कि देश के चार राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब की सरकारों द्वारा पुरानी पेंशन को बहाल करने का निर्णय अनैतिक है और यदि पुरानी पैशन बहाल की जाती है तो इससे देश की अर्थव्यवस्था हिल जाएगी। क्षेत्रीय संपादकों और कॉर्पोरेट समर्थक विद्वानों द्वारा कुछ प्रकाशन समूहों के क्षेत्रीय और क्षेत्रीय संस्करणों में व्यक्त की जा रही आशंकाएं न केवल निराधार हैं बल्कि पथभ्रष्ट भी है। नई पेंशन को रद्द कर पुरानी पैंशन को वापस लेना कोई सामान्य प्रशासनिक निर्णय या कर्मचारियों से जुड़ा कोई छोटा मोटा फैसला नहीं है। यह पहले पैशन फिर सेवाओं का निजीकरण ‘वाला फैसला तोड़ने के बराबर है’ यह याद रखना चाहिए कि पैंशन का निजीकरण उन कड़ियों की अगली कड़ी है जो बैंकों के निजीकरण, बीमा क्षेत्र के निजीकरण और अन्य निजीकरणों से जुड़ी हुई हैं।

पुरानी पेंशन की बहाली कॉर्पोरेट घरानों को बिल्कुल मंजूर नहीं होगी। इन कॉर्पोरेट घरानों द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चलाए जाने वाले समाचार पत्रों में कभी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट, कभी राजीव कुमार की रिपोर्ट, तो कभी अपने पसंदीदा अरविंद पनगढ़िया के लेख पुरानी पेंशन के खिलाफ छपते हैं। पुरानी पेंशन बहाल करने से हजारों करोड़ खजाने में हजारों करोड़ रुपये कॉर्पोरेट की तिजोरियों में प्रति महीने जाने बंद हो जाएंगे। कॉरपोरेट जगत सिर्फ इसी पैसे को बचाने के लिए झूठा शोर मचा रहा है। डी. एस. नाकारा बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले ने 50 लाख लोगों को सामाजिक सुरक्षा दी और इसका नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दुनिया के सबसे से अधिक लोगों को लाभांवित करने के लिए फैसले के रूप में दर्ज किया गया। कहा गया कि पैंशन कोई वरदान या भीख नहीं है बल्कि कर्मचारियों की आजीवन सेवाओं का फल है। इस फैसले को भारतीय कामगारों का मैग्ना कार्टा भी कहा जाता है। सरकार ने न सिर्फ इस फैसले के खिलाफ जाकर संविधान के अनुच्छेद 21, 38, 38-(1), 38- (2) और 41 का भी उल्लंघन किया था। एक कल्याणकारी राज्य में कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा के पहलू देश कर्मचारियों से चलता है, कर्मचारियों से सरकार चलती है, यदि सरकार के महत्वपूर्ण अंग कर्मचारियों को पैशन की सुविधा प्रदान की जाती है, तो उपरोक्त विद्वानों के अनुसार यह अनैतिक हो जाता है।

लेकिन कर्ज माफ करना नैतिक है या अनैतिक कारपोरेट घरानों ये नहीं सोचते। यह भी देखा जाना चाहिए कि अन्य देशों में पैंशन का खर्च कितना है। भारत में देश की कुल जी.डी.पी. 1.7 प्रतिशत, कोरिया और हांगकांग में 2 प्रतिशत, जापान 9 प्रतिशत, जर्मनी 12 प्रतिशत, इटली 14 प्रतिशत जी.डी.पी. का हिस्सा है। पैंशन पर व्यय किया गया है। इंगलैंड में, राष्ट्रीय आय का 10 प्रतिशत पैंशनभोगी कल्याण के लिए उपयोग किया जाता है। पंजाब सरकार द्वारा लिए गए पैंशन बहाली के फैसले को लागू करने से निजी कंपनियों के पास जाने वाला पैसा पंजाब सरकार के खजाने में आने लगेगा। इसके साथ ही जनकल्याणकारी कार्यक्रम और अन्य विकास योजनाओं को लागू किया जा सकता है।

चार राज्य सरकारें पहले ही एन.पी.एस. को वापस ले चुकी हैं और कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल कर चुकी हैं। उम्मीद है कि अन्य राज्य इस काम के लिए आगे आएंगे। पंजाब सरकार ने भी पैंशन बहाल करने का ऐलान करके राज्य के पैशन फंड के रूप में गए 17 हजार करोड़ को वापस पाने की तैयारी भी शुरू कर दी है। राजस्थान सरकार ने पैंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण से अपने राज्य के पैशन फंड के रूप में 39000 करोड़, झारखंड ने 19000 करोड़ और छत्तीसगढ़ ने 17000 करोड़ की मांग की है। इस तरह इन राज्यों, राज्यों के खजाने में करोड़ों रुपये वापस आते दिख रहे हैं।


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