सुप्रीम कोर्ट: आपराधिक केस छिपाने भर से नौकरी से नहीं निकाल सकते, नियोक्ता नहीं कर सकते मनमानी

नई दिल्ली:- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल आपराधिक मामले से संबंधित सामग्री छुपाने या झूठी जानकारी देने का मतलब यह नहीं है कि नियोक्ता मनमाने ढंग से कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त कर सकता है। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि इस तथ्य की परवाह किए बिना कि कोई दोषसिद्धि हुई है या बरी किया गया है, केवल तथ्यों को छिपाने या झूठी जानकारी पर एक झटके में नौकरी से बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिए।पीठ ने कहा है कि ऐसी हालत में नियोक्ता को उचित निर्णय लेने से पहले उपलब्ध सभी प्रासंगिक तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करना चाहिए। साथ ही प्रासंगिक सेवा नियमों को ध्यान में रखते हुए किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए।शीर्ष अदालत ने अवतार सिंह बनाम भारत संघ मामले (2014) में दिए फैसले पर भरोसा करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ पवन कुमार द्वारा दायर एक अपील को स्वीकार कर लिया। हाईकोर्ट ने आपराधिक मामले का खुलासा नहीं करने पर रेलवे सुरक्षा बल के एक कांस्टेबल को बर्खास्त करने के आदेश को मंजूरी दे दी थी।

आवेदन के बाद दर्ज हुई थी प्राथमिकी

शीर्ष अदालत ने पाया कि मामले में एफआईआर आवेदन जमा करने के बाद दर्ज की गई थी। पीठ ने कहा, हमने आपराधिक मामले में लगाए गए आरोपों की प्रकृति को भी ध्यान में रखा है। अपराध मामूली था, जिसमें नैतिक अधमता शामिल नहीं थी।


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