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विद्यार्थियों को किताबों के लिए करना होगा इंतजार


विद्यार्थियों को किताबों के लिए करना होगा इंतजार

एनसीईआरटी किताबों के लिए अब तक जारी नहीं हो सका टेंडर

■ पिछले साल जीएसटी-रॉयल्टी के विवाद में नहीं छपी थीं किताबें

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प्रयागराज। यूपी बोर्ड से जुड़े 27 हजार स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा नौ से 12 तक के एक करोड़ से अधिक छात्र-छात्राओं को नए सत्र में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (एनसीईआरटी) किताबों के लिए कम से कम तीन महीने इंतजार करना होगा। प्रदेशभर के माध्यमिक स्कूलों में 2025-26 सत्र की शुरुआत एक अप्रैल से होनी है जबकि किताबें बाजार में जून अंत या जुलाई के पहले सप्ताह में ही उपलब्ध हो सकेंगी।

यूपी बोर्ड ने हिन्दी, संस्कृत और उर्दू की अपनी किताबों का टेंडर तो 12 मार्च को जारी कर दिया है और चार अप्रैल को खोला जाएगा लेकिन एनसीईआरटी किताबों के लिए टेंडर की अनुमति अब तक शासन से नहीं मिल सकी है। ये अलग बात है कि माध्यमिक शिक्षा निदेशक और यूपी बोर्ड के सभापति डॉ. महेन्द्र देव ने एनसीईआरटी से किताबों का कॉपीराइट मांगने के लिए शासन से अक्टूबर में ही अनुमति मांग ली थी।

सूत्रों के अनुसार, मार्च अंत तक अनुमति मिलने की उम्मीद है जिसके बाद छपाई की प्रक्रिया शुरू होगी और किताबों के बाजार में आने में कम से कम तीन महीने का समय लग जाएगा। टेंडर जारी होने में अमूमन एक महीने का समय लगता है। उसके बाद प्रकाशकों को अपनी तैयारी करने में लगभग एक महीने लग जाते हैं और फिर प्रकाशन से लेकर बाजार तक पहुंचाने में न्यूनतम एक महीने का समय चाहिए होता है।

हालांकि एक अच्छी बात है कि शासन ने रॉयल्टी और जीएसटी के दो करोड़ से अधिक के भुगतान की अनुमति दे दी है जिससे इस सत्र में एनसीईआरटी किताबों के प्रकाशन का रास्ता साफ हो गया है। पिछले साल यूपी बोर्ड और प्रकाशकों के बीच इसी विवाद के कारण किताबों का प्रकाशन नहीं हो सका था। यूपी बोर्ड के सचिव भगवती सिंह का कहना है कि किताबों के प्रकाशन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और तीन महीने में एनसीईआरटी किताबें बाजार में सुलभहो जाएंगी।

हर बार जुलाई तक उपलब्ध हो पाती हैं किताबें

एक अप्रैल से नया सत्र शुरू होने और माध्यमिक शिक्षा विभाग के अफसरों के समय से किताबें उपलब्ध करा उपलब्ध कराने के दावों के बावजूद हर साल जुलाई तक ही किताबें बाजार में पहुंच पाती हैं। पिछले साल तो किताबें छप ही नहीं सकी थीं। उससे पहले के सत्रों में भी जुलाई तक ही किताबें उपलब्ध हो सकी हैं। इसके चलते अधिकांश छात्र-छात्राओं को महंगी और अनाधिकृत किताबें खरीदनी पड़ती हैं। सत्र शुरू होने के साथ ही शिक्षक विद्यार्थियों पर किताबें खरीदने का दबाव बनाने लगते हैं और अप्रैल में ही अधिकांश बच्चे महंगी किताबें खरीद लेते हैं।


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