समाज कल्याण विभाग ने सामान्य वर्ग के कक्षा 10 से ऊपर की कक्षाओं (पोस्ट मैट्रिक) और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के 3.92 लाख छात्र-छात्राओं के लिए 432 करोड़ रुपये मांगे

लखनऊ:–चालू शैक्षिक सत्र में छात्रवृत्ति व फीस भरपाई की सरकारी सुविधा पाने से वंचित कक्षा दस से ऊपर की कक्षाओं और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के छात्र-छात्राओं की संख्या और बढ़ गई है। इनमें ओबीसी के करीब 14 लाख, सामान्य वर्ग के 4 लाख व अल्पसंख्यक वर्ग के 2 लाख छात्र-छात्राएं शामिल हैं।इस तरह से यह तादाद करीब 20 लाख छात्र-छात्राओं की है। यह सभी वंचित छात्र-छात्राएं अधिकांशत: निजी शिक्षण संस्थाओं के स्नातक, स्नातकोत्तर और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के हैं जिनकी फीस लाखों में होती है। छात्रवृत्ति व फीस भरपाई न मिल पाने की वजह से इनके शैक्षिक कैरियर के प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई है।पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग ने नए सिरे से गणना कर शासन को जो रिपोर्ट भेजी है उसके अनुसार इन कक्षाओं व पाठ्यक्रमों में ओबीसी के 13,77, 213 गरीब छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति व फीस भरपाई की 10 हजार 399 करोड़ रुपये की राशि दी गई। करीब इतने ही छात्र-छात्राएं आवेदन करने के बाद भी और बजट न होने की वजह से यह सुविधा पाने से वंचित रह गए हैं। पहले छात्रवृत्ति व फीस भरपाई से वंचित ओबीसी छात्र-छात्राओं की संख्या 10 लाख के आसपास बताई गई थी।

इसके अलावा समाज कल्याण विभाग से सामान्य वर्ग के 5 लाख 38 हजार छात्र-छात्राओं को 575 करोड़ रुपये की राशि छात्रवृत्ति व फीस भरपाई में दी गई। बजट कम पड़ जाने की वजह से 3.92 लाख छात्र-छात्राएं वंचित रह गए। समाज कल्याण निदेशालय से मिली जानकारी के अनुसार इस बार सामान्य वर्ग के पोस्ट मैट्रिक कक्षाओं में पढ़ रहे कुल 9.35 लाख छात्र-छात्राओं ने आवेदन किया था।वंचित रह गए 3.92 लाख छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति व फीस भरपाई दिलवाने के लिए विभाग पर काफी दबाव है। पिछले दिनों इन नाराज छात्र-छात्राओं ने निदेशालय जाकर विरोध प्रदर्शन भी किया। निदेशालय के अफसरों के अनुसार इन वंचित छात्र-छात्राओं के लिए 432 करोड़ रूपये की राशि मांगी गयी है, हालांकि राज्य मद से इसके मिलने के आसार कम ही हैं।अल्पसंख्यक कल्याण विभाग से मिली जानकारी के अनुसार 13 लाख अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति व फीस भरपाई की राशि देने के बावजूद दो लाख छात्र-छात्राएं वंचित रह गए जिनके लिए करीब दो हजार करोड़ रुपये की और जरूरत है जिसके मिलने के आसार नहीं हैं।


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