तीन सदस्यीय पीठ ने पूछा इस तरह लागू किया और कैसे वह फायदा?
नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सशस्त्र बलों में वैन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) को लेकर जिस तरह से गुलाबी तस्वीर पेश की जा रही है। वह वास्तविकता से अलग है शीर्ष अदालत ने बुधवार को मौजूदा नीति के संबंध में केंद्र सरकार पर सवालों की बौछार की।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ में सरकार से पूछा कि आपने वन रैंक वन पेंशन को किस तरह से लागू किया और इसके बाद क्या होता है हमें कुछ लोगों के उदाहरण दें कि लोगों को इससे कैसे फायदा हुआ पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता दावा कर रहे हैं कि वन रैंक वन पेंशन को 2006 में आई संशोधित सुनिश्चित कैरियर प्रगति (MACP) योजना से जोड़कर सरकार ने लाभो को काफी हद तक कम कर दिया है। और वन रैंक वन पेंशन के सिद्धांत की हार हो गई है।
पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश एडीशनल सॉलीसीटर जनरल एसजी वेकेंटरमण से एमएसीपी से जुड़े आने को कहा। कोर्ट ने पूछा कि एमएसीपी कब पेश किया गया? कितने लोगों को योजना का लाभ मिला? और कितने लोग वन रैंक वन पेंशन का लाभ पाने के पात्र हैं? अगली सुनवाई 23 फरवरी 2022 को होगी।
पीठ ने पूछा कि मान लीजिए कोई 1990 में सेवानिवृत्त तो हुआ और एमएसीपी योजना 2006 में आयी। ऐसे में रैंक अब भी बनी रहेगी, लेकिन अधिकारी को अलग वेतनमान मिलेगा? इस पर एएसजी वेकेंटरमन ने पीठ से एमएसीपी को मामले में नहीं लाने का आग्रह किया।
◆ पीठ ने पूछा हम जानना चाहते हैं कि कितने लोगों को एमएसीपी मिली है? आप कह रहे हैं कि जिन लोगों के पास एमएसीपी है वह एक अलग विशिष्ट वर्ग हैं? पीठ ने कहा वन रैंक वन पेंशन के लिए एमएसीपी अहम है, अगर 80% सिपाहियों को एमएसीपी मिलती है तो क्या उन्हें वन रैंक वन पेंशन मिलेगी??