प्रदेश में अब थमेगी बारिश, ज्यादातर जिलों में गरज-चमक की चेतावनी

लखनऊ। मौसम विभाग का कहना है झमाझम बारिश के आसार फिलहाल नहीं हैं। संकेत बूंदाबांदी और बौछारों के ही हैं। हालांकि मौसम विभाग ने प्रदेश के ज्यादातर जिलों में बारिश से राहत के संकेत देते हुए बादल छाए रहने, गरज-चमक की चेतावनी जारी की है। जिन जिलों केलिए भारी बारिश की चेतावनी हैं, उनमें सिद्धार्थनगर, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, लखीमपुर खीरी व आसपास के इलाके शामिल हैं। लखनऊ, बांदा, चित्रकूट, कौशांबी, प्रयागराज, फतेहपुर, प्रतापगढ़, सोनभद्र, संत रवीदास नगर, जौनपुर, गाजीपुर, आजमगढ़, मऊ, बलिया, देवरिया, गोरखपुर, हरदोई कानपुर, उन्नाव, बाराबंकी, रायबरेली, अमेठी, सुल्तानपुर, अयोध्या, अंबेडकर नगर, देवरिया, पीलीभीत, शाहजहांपुर, संभल, बंदायूं समेत प्रदेश के लगभग सभी जिले में गरज चमक केसाथ फुहारों व बूंदाबांदी के आसार है। फिलहाल 13 अक्तूबर तक ऐसा ही हाल रहेगा। इसके बाद मौसम धीरे-धीरे सामान्य होने लगेगा।

बारिश से गड़बड़ाएगा फसल चक्र, लेट होगी रबी फसलों की बोआई:

बारिश के कारण फसल चक्र पूरी तरह से बिगड़ने की स्थिति में आ गया है। लगातार हो रही बारिश के कारण जहां वर्तमान फसलें नष्ट हो रहीं हैं तो वहीं रबी फसल उत्पादन अभियान 2022 2023 भी ध्वस्त हो गया है। अक्तूबर में इतनी तेज बारिश प्रदेश की खेती के मूल आधार को अस्त व्यस्त कर दिया है। दरअसल देश में खेती मौसम आधारित है। विशेषज्ञ भी अति वृष्टि जैसी आपदा से निपटने का सार्थक मार्ग अभी नहीं ढूंढ पाए हैं। बावजूद इसके कि इसके लिए तमाम गोष्ठियों व कार्यक्रमों के आयोजन हो रहा है। दरअसल खरीफ की मुख्य फसल धान पर इस समय संकट है। धान लगातार बारिश के कारण बरबाद हो रहा है।

इसके बाद रबी की सीजन भी संकट में है। अक्तूबर, नवंबर माह में किसान रबी फसलों की बोआई करते हैं। गेहूं, जौ, जई, मटर आदि फसलों का यह मुख्य समय होता है पर इस बार यह शेड्यूल भी गड़बड़ाने की तरफ जा रहा है। कृषि वैज्ञानिक संदीप चौधरी कहते हैं कि जब खरीफ का सत्र लेट होगा तो इसका असर रबी पर भी जाएगा। रबी फसलों की बोआई भी देरी से होगी। दरअसल इस बारिश का ही असर है कि मंडलीय रबी गोष्ठियों को स्थगित कर दिया गया है। कृषि उत्पादन आयुक्त की अध्यक्षता में इन गोष्ठियों का बुधवार से आयोजन होना था। 21 अक्तूबर तक होने वाली इन गोष्ठियों का शेड्यूल अब बारिश थमने के बाद ही तय किया जाएगा। उधर गन्ने का सत्र भी देर होने की स्थिति में आ गया है। कम से कम दो सप्ताह देरी से मिलें चलने की बात कही जा रही है। यदि इतनी तगड़ी बारिश न होती तो अब तक मिलों के बॉयलर सुलग उठते ।

धान क्रय केंद्रों पर नहीं हो रही खरीद:

बारिश का असर यह है कि धान क्रय केंद्रों पर खरीद नहीं हो पा रही है। पश्चिमी उप्र में एक अक्तूबर से धान की खरीद शुरू की गई है पर केंद्र सूने पड़े हैं। चूंकि धान की कटाई ही नहीं हो पा रही है। ऐसे में एक नवंबर से पूर्वी उम्र में धान की खरीद शुरू करने की तैयारियों पर भी संकट नजर आ रहा है।

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