2017 में एक फिल्म आई थी, नाम था ‘हिंदी मीडियम’। कहानी कॉन्वेंट स्कूल में अपने बच्ची के एडमिशन कराने की जद्दोजहद में लगे परिवार की थी। बाद में इस परिवार ने सरकारी स्कूल में बच्ची का एडमिशन कराया और यह भी दिखाया कि सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी किसी से कम नहीं, बस जरूरत है उनपर भरोसा करने की।

वाराणसी:- 30 अप्रैल तक चले ‘स्कूल चलो’ अभियान के दौरान बेसिक शिक्षा विभाग के आंकड़े भी कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे हैं। मध्यमवर्गीय परिवारों के अभिभावकों का कॉन्वेंट शिक्षा से मोह भंग हो रहा है। महीने भर में जिले के लगभग 10 हजार अभिभावकों ने अपने बच्चों के नाम कॉन्वेंट स्कूलों से कटाकर सरकारी स्कूलों में लिखाया हैं। इनमें हजारों अभिभावक कॉन्वेंट स्कूलों की महंगी फीस और किताब-कॉपी, यूनीफॉर्म के खर्च से त्रस्त हैं तो 40 प्रतिशत ऐसे भी हैं जिन्होंने सरकारी स्कूलों में बढ़ती सुविधाओं पर भरोसा जताया है।

बीएसए राकेश सिंह बताते हैं कि सरकारी स्कूल अब छवि बदलने की कवायद में लगे हैं। यहां सिर्फ पढ़ाई नहीं बल्कि बच्चों को अभिव्यक्ति के मौके भी दिए जा रहे हैं। शिक्षण के दौरान बच्चों की खेल, गायन, कला, लेखन आदि प्रतिभा को संवारने की दिशा में भी काम किया जा रहा है। बेसिक शिक्षा के 700 से ज्यादा स्कूलों में अब स्मार्ट क्लास की सुविधा हो चुकी है। इसके अलावा स्कूलों में सफाई, रंगरोगन, खेलकूद के सामान के साथ ही एनसीईआरटी के मॉड्यूल पर शिक्षण हो रहा है। 

शिक्षिका और सरकारी कर्मियों ने जताया भरोसा

सरकारी स्कूलों पर भरोसा करने वालों में सिर्फ प्राइवेट नौकरीपेशा अभिभावक नहीं बल्कि सरकारी कर्मचारी भी हैं। काशी विद्यापीठ के भिटारी प्राथमिक विद्यालय में सुनील मौर्य ने अपने दो बच्चों का एडमिशन कराया जो क्षेत्र के एक अंग्रेजी स्कूल में पढ़ते थे, सुनील प्राइवेट जॉब करते हैं। प्राइवेट कर्मचारी बलदेव ने भी यहां अपने बच्चे डाले हैं। प्राथमिक विद्यालय पिंडरा में ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के कर्मचारी संदीप सिंह ने अपने बेटे का एडमिशन कराया है तो सुल्तानपुर की शिक्षिका जूली सिंह ने भी अपने बच्चों को यहां डाला है। इसी तरह मंडुवाडीह प्राथमिक विद्यालय में व्यवसायी शशि सोनकर ने अंग्रेजी स्कूल से निकालकर अपने बच्चे का एडमिशन कराया है।


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