लखनऊ:- होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। होलिका दहन 17 मार्च को होगा। वहीं रंग वाली होली 18 मार्च को है। हालांकि कुछ पंचाग के अनुसार उदया तिथि में प्रतिपदा का मान लेते हुए रंगोत्सव 19 मार्च को है। ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि भद्रा रहित प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि होलिका दहन के लिए उत्तम मानी जाती है। भद्रा मुख में होलिका दहन नहीं करना चाहिए।पूर्णिमा तिथि 17 मार्च को दिन में 1:29 से शुरू होकर अगले दिन 12:47 तक रहेगी। इस बीच 17 मार्च को भद्रा दोपहर 1:29 बजे से शुरू होकर रात्रि 1:12 तक रहेगा। वहीं भद्रा पूंछकाल रात्रि 09:06 से रात्रि 10:16 तक एवं भद्रा मुखकाल रात्रि 10 :16 से रात्रि 12 :13 तक रहेगा।

धर्मसिन्धु ग्रन्थ मान्यता के अनुसार भद्रा मुख में होलिका दहन नहीं करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। होलिका दहन भद्रा पूंछकाल में रात्रि 09:06 से रात्रि 10:16 के मध्य या भद्रा समाप्ति रात्रि 01:13 के बाद किया जा सकता है।

होलिका दहन के साथ बुराइयों का नाश

होलिका दहन के स्थान पर सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास आदि रखें। इसके बाद पूर्व दिशा की तरफ मुख करके भगवान नरसिंह की पूजा करें। ऊं होलिकायै नम: मंत्र का उच्चारण करें। पूजा के समय एक लोटा जल, चावल, रोली, माला, गंध, मूंग, सात प्रकार के अनाज, फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल, होली पर बनने वाले पकवान व गेहूं की बालियां आदि होलिका दहन की अग्नि में अर्पित करें। इसके बाद होलिका की तीन या सात बार परिक्रमा करें। होलिका के पूजन से सभी बुराइयों का नाश होता है। होलिका के भस्म का टीका लगाने से सुख समृद्धि और आयु बढ़ती है।

होली मनाने का कारण

शास्त्रों के अनुसार हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। लेकिन हिरण्यकश्यप को अपने बेटे की भक्ति पसंद नहीं थी। भगवान विष्णु की भक्ति से दूर करने के लिए उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को कई तरह की यातनाएं दीं। यातनाएं सहने के बाद भी प्रहलाद नहीं माना तो उसने अपनी बहन होलिका को अपना पुत्र सौंप दिया। होलिका के पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। होलिका प्रह्लाद को जलाने के उद्देश्य से अपनी गोद में लेकर अग्नि में समाहित हो गयी लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप से खुद होलिका ही आग में जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहा। इस प्रकार होली का यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

चौक की होली में दिखते हैं सद्भाव के रंग

चौक की होली गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है। यहां सद्भाव के रंग दिखते हैं। इस होली में समाज का हर वर्ग शरीक होता है। हिन्दू भाई होलियारों की टोली फाग गीत गाते हुए अबीर-गुलाल उड़ाते जब मुस्लिम इलाकों से गुजरती है तो मुस्लिम भाई जगह-जगह इन पर इत्र छिड़ककर और मुंह मीठा कराकर स्वागत करते हैं। लखनवी तहजीब को अपने आंचल में छिपाए इस रंगोत्सव की अपनी अलग पहचान है। यह परम्परा करीब छः दशक से चली आ रही है। यह परम्परा आज भी नफासत के साथ कायम है।होलिकोत्सव समिति चौक के संयोजक अनुराग मिश्रा ‘अन्नू’ ने बताया कि होली के दिन कोनेश्वर चौराहे से साहित्यकार अमृतलाल नागर और मध्यप्रदेश के पूर्व राज्यपाल लाल जी टण्डन के सहयोग से होली जुलुस निकालने की शुरुआत की गई थी।

राजधानी में तीन हजार जगह होलिका दहन

राजधानी में गुरुवार को करीब तीन हजार जगह होलिका दहन होगा। जिसमें से 2100 जगह शहरी क्षेत्र में होलिका जलाई जाएगी। ग्रामीण क्षेत्र में 1000 जगह पर होली दहन होगा। होलिका दहन के दौरान शांति व्यवस्था बनी रहे इसके लिए जगह- जगह पुलिस बल भी तैनात रहेगा। सिविल डिफेंस के चीफ वार्डेन अमरनाथ मिश्रा का कहना है हर बार की तरह इस बार भी चौराहों और गली मोहल्लों में जगह-जगह होलिका दहन का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अभी पूरी तरह से कोराना खत्म नहीं हुआ है। इसलिए पूरे एहतियात के साथ होली का पर्व मनाएं।


Leave a Reply