लखनऊ: प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के शिक्षकों को विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश सरकार बड़ा तोहफा दे सकती है। शिक्षक संगठनों की तरफ से उठाए जाने कुछ प्रमुख मुद्दों पर उच्च शिक्षा विभाग में गंभीर मंथन चल रहा है। वित्त विभाग की सहमति प्राप्त होते ही इसकी घोषणा की जाएगी। महाविद्यालयों में प्रोफेसर पदनाम देने पर सहमति बन चुकी है। वित्तीय व्यय भार का आकलन होने के बाद इस बारे में भी फैसला हो जाएगा।

प्रदेश सरकार के सकारात्मक रुख को देखते हुए शिक्षक संगठनों ने भी दबाव बनाना शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय महाविद्यालय शिक्षक महासंघ (फुपुक्टा) के आह्वान पर गत पांच अक्तूबर को सभी जिला मुख्यालयों पर धरना भी दिया गया था। इसमें यूजीसी की संस्तुतियों के आधार पर सेवाननिवृत्ति की आयु 65 वर्ष किए जाने, महाविद्यालयों में प्रोफेसर पदनाम व वेतनमान दिए जाने, पीएचडी पर पांच व एमफिल पर तीन अतिरिक्त वेतन वृद्धि दिए जाने, केवल नो ड्यूज के आधार पर एकल स्थानान्तरण की सुविधा दिए जाने तथा परीक्षा पारिश्रिमिक की दरें संशोधित किए जाने समेत कई मांगें उठाई गई थीं। इससे पहले अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के उच्च शिक्षा संवर्ग के प्रभारी महेन्द्र कुमार ने उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने मुलाकात करके एक मांगपत्र सौंपा था। यह संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुषांगिक है। इसमें भी महाविद्यालयों में प्रोफेसर पदनाम देने की मांग प्रमुखता से उठाई गई थी। उच्च शिक्षा विभाग के सूत्रों का कहना है कि महाविद्यालयों में प्रोफेसर पदनाम देने पर आने वाले व्ययभार के संबंध में वित्त विभाग के साथ विचार-विमर्श चल रहा है। वित्त विभाग की हरी झंडी मिलने के बाद यह विषय कैबिनेट के समक्ष ले जाया जाएगा। इस मामले में सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है। पीएचडी व एमफिल डिग्रीधारी शिक्षकों को इंक्रीमेंट देने के प्रकरण में भी व्यय भार का आकलन किया जा रहा है। सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष किए जाने के मुद्दे पर भी कई स्तरों पर विचार चल रहा है। चुनाव की दृष्टि से सबसे प्रभावकारी होने के कारण इस मुद्दे पर भी फैसला होने की संभावना है।


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