इलाहाबाद हाईकोर्ट // अनुकंपा नियुक्ति अर्जी देने के बाद हुई शादी की जानकारी न देना तथ्य छिपाना नहीं

प्रयागराज:- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि मृतक आश्रित कोटे के तहत अनुकंपा नियुक्ति के लिए अर्जी दाखिल करने के बाद यदि आश्रित पुत्री का विवाह हो जाता है। और उसने विवाह की सूचना अपनी अर्जी में नहीं दी है तो उसे जानकारी छिपाना नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने विवाहिता पुत्री को गलत जानकारी देने के आधार पर सेवा समाप्ति आदेश निरस्त करने के एकल पीठ के फैसले पर हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। और राज्य सरकार की विशेष अपील खारिज कर दी।

कोर्ट ने कहा कि जिस समय याची ने आश्रित कोटे में नियुक्ति की अर्जी दी थी उस समय में अविवाहित थी। नियुक्ति में देरी के कारण बाद में शादी कर ली। यह नहीं कह सकते कि याची ने विवाहिता पुत्री होने के तथ्य को छिपाया। कोर्ट ने विवाहिता पुत्री को भी मृतक आश्रित परिवार में शामिल करने का फैसला किया है। उसे नियुक्ति पाने का अधिकार है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश राकेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ में सहारनपुर की पूजा सिंह के पक्ष में एकल पीठ के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की विशेष अपील को खारिज करते हुए दिया है। याची के पिता स्वास्थ विभाग में श्रम निरीक्षक थे सेवाकाल में उनकी मौत हो गई।  याची उस समय नाबालिग थी। बालिक होने पर आश्रित कोटे में नियुक्ति की अर्जी दी नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने में 6 साल बीते इस दौरान याची की शादी हो गई। 4 नवंबर 2006 को उप श्रमायुक्त पद पर नियुक्ति की गई। 15 साल की सेवा के बाद यह कहते हुए नियुक्तियां निरस्त कर दी गई कि याची ने विवाहिता पुत्री होने का तथ्य छिपाकर नियुक्ति प्राप्त की है। कोर्ट ने कहा है कि जब याची ने अर्जी दी थी तब वह विवाहिता पुत्री रही थी नियुक्ति देने के समय तक विवाहिता हो चुकी थी यह नहीं कह सकते कि याची ने तब तथ्य ही पाया है।


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