जेल में बंद रहने से छूटे काम के बदले नहीं मिल सकता वेतन
प्रयागराज,इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगभग तीन वर्ष से जेल में बंद कर्मचारी को उस दौरान के वेतन के मामले में राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि जेल में बंद रहने पर काम नहीं करने के कारण कर्मचारी को उस अवधि का वेतन पाने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत लागू होता है।

याची ने उक्त अवधि के लिए मजदूरी के भुगतान के लिए विद्युत प्राधिकरण से संपर्क किया तो कोई काम नहीं तो कोई वेतन नहीं सिद्धांत के आधार पर उसका अनुरोध खारिज कर दिया गया। इसके बाद याची ने कारावास की अवधि के लिए मजदूरी के भुगतान की मांग करते हुए याचिका दाखिल की। कोर्ट ने कहा कि केवल दुर्लभमामलों में ही जैसे नियोक्ता द्वारा कर्मचारी के कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा उत्पन्न करने पर काम नहीं तो वेतन नहीं के सिद्धांत को छोड़ा जा सकता है।
हाईकोर्ट ने कहा कि रणछोड़जी चतुरजी ठाकोर बनाम अधीक्षक अभियंता गुजरात विद्युत बोर्ड हिम्मतनगर (गुजरात) और अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि जब कोई कर्मचारी किसी कथित अपराध के लिए जेल में बंद होता है और बाद में बरी हो जाता है तो नियोक्ता पर कारावास की अवधि के लिए वेतन का भुगतान करने का बोझ नहीं डाला जा सकता है। खासकर जब काम से ऐसी अनुपस्थिति किसी अनुशासनात्मक जांच के कारण न हो, जिसे बाद में अवैध पाया गया हो।
यह निर्णय न्यायमूर्ति अजय भनोट ने शिवाकर सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।
महाकुम्भ में गड़बड़ी की जांच पर निर्णय सुरक्षित
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महाकुम्भ में गड़बड़ी की सीबीआई जांच को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर निर्णय सुरक्षित कर लिया है। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने मंगलवार को केशर सिंह, योगेंद्र कुमार पांडेय व कमलेश सिंह की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। जनहित याचिका में महाकुम्भ में गड़बड़ियों की सीबीआई जांच, आवश्यक कार्यवाही के लिए रिपोर्ट अधिकारियों को प्रस्तुत करने का निर्देश देने की मांग की गई है।