सरकारी कर्मियों पर एफआइआर से पहले शासन की मंजूरी जरूरी

मुकदमा दर्ज करवाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम् फैसला

पुलिसकर्मी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी याचिका

दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सुनाया फैसला

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सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज करवाकर अकारण ही दबाव बनाने वालों पर अब सुप्रीम कोर्ट ने शिकंजा कस दिया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए एफआइआर से पहले शासन की अनुमति को अनिवार्य कर दिया है। निचली अदालतों को भी आंख बंद कर 156/3 के मुकदमों पर गंभीर होने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रति यहां डीएम व एसएसपी ऑफिस भी पहुंच चुकी है।

कर्नाटक के पुलिस कर्मचारी डीटी बीरू ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पीटीशन (एसएलपी) दायर की थी। बीरू ने मुकदमा अपराध संख्या 74/2003 का हवाला दिया, जिसमें उनके ऊपर आइपीसी की धारा 323, 324, 341, 114, 149, 504, 596 के तहत मुकदमें में न्याय मांगा था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अनिल आर दबे और जस्टिस कुरियन जोसेफ की डिविजन बेंच महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। फैसले में स्पष्ट रूप से कहा है कि ज्यादातर मामले में व्यक्ति विशेष अपनी निजी खूंदक या सरकारी कर्मचारियों पर दबाव बनाने के लिए जिला अदालतों से 156/3 के तहत एफआइआर के आदेश करवा कर मुकदमा दर्ज करवा देता है। मुकदमा दर्ज होने के बाद सरकारी कर्मचारी दबाव महसूस करता है और न चाहते हुए भी मजबूरी में समझौता कर लेता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यदि निचली अदालत में कोई सरकारी कर्मचारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाने के लिए याचिका दायर करता है तो ये जिम्मेदारी अभियोजन की होगी कि वो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत संबंधित सरकारी कर्मचारी पर मुकदमा चलाने की अनुमति शासन से लेगा। एसएसपी राजेंद्र प्रसाद सिंह यादव ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रति आ चुकी है, इससे अब सरकारी कर्मचारियों पर बहुत राहत हो जाएगी, क्योंकि 156/3 के तहत दर्ज होने वाले मुकदमों का सबसे ज्यादा दंश पुलिसकर्मचारियों को ही झेलना पड़ता है।

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