हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, उच्च शैक्षणिक संस्थानों में छात्राओं को मिलेगा मातृत्व अवकाश

प्रयागराज:-उच्च शैक्षणिक संस्थानों में अब स्नातक और परास्नातक छात्राओं को मातृत्व अवकाश और उससे जुड़े सभी लाभ मिलेंगे। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस संबंध में सुनवाई करते हुए ऐतिहासिक फैसला दिया है और स्नातक और परास्नातक छात्राओं के लिए मातृत्व अवकाश व उससे जुड़ी सुविधाओं को लेकर विश्वविद्यालयों, कॉलेजों के लिए नई व्यवस्था निर्धारित की है। सौम्या तिवारी की ओर से दाखिल याचिका पर मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकल खंडपीठ कर रही थी।कोर्ट ने मामले में पाया कि विश्वविद्यालय, कॉलेजों में स्नातक और परास्नातक छात्राओं के लिए मातृत्व अवकाश और उससे जुड़े लाभों से जुड़े नियम कानून या कोई व्यवस्था न होने से याची को परीक्षा से वंचित कर दिया गया।

कोर्ट ने इसे छात्रा के मौलिक अधिकारों का हनन माना और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय लखनऊ को निर्देशित किया कि वह छात्रा को परीक्षा में शामिल होने के लिए अतिरिक्त मौका दे।इसके साथ ही कोर्ट ने तकनीकी विश्वविद्यालय को यह भी निर्देशित किया कि वह स्नातक और परास्नातक छात्राओं को मातृत्व अवकाश और उससे जुड़े सभी लाभों के लिए नियम बनाए, जिसमें परीक्षा पास करने के लिए अतिरिक्त मौका दिए जाने के लिए व्यवस्था करनी होगी। कोर्ट ने यह भी कहा है कि तकनीकी विश्वविद्यालय को चार महीने के भीतर उसके आदेशों का पालन करना होगा।छात्राओं से भी कहा है कि वह तकनीकी विश्वविद्यालय केसमक्ष प्रत्यावेदन देंगी। विश्वविद्यालय को उस प्रत्यावेदन पर छात्रा को परीक्षा के लिए अतिरिक्त मौका देना होगा। याची की ओर से अधिवक्ता उदय नारायन और लाल देव ने पैरवी की। मामले में प्रतिवादी अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) अपने जवाबी हलफनामे में याचिकाकर्ता को मातृत्व लाभ देने का विरोध नहीं किया। 

यह कहा एकल पीठ ने:-

विश्वविद्यालय ने गर्भवती माताओं और नई माताओं को मातृत्व लाभ प्रदान करने के लिए कानूनी उपेक्षा की है। अपने वैधानिक कार्यों को करने में विश्वविद्यालय की विफलता ने छात्राओं को मातृत्व लाभ से वंचित कर दिया है। विश्वविद्यालय की यह जड़ता गर्भवती छात्राओं की दुर्दशा के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाती है, कानून के शासन को कमजोर करती है और समग्र शिक्षा के आदर्श को विकृत करती है। विश्वविद्यालय की चूक के आधार पर याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार (संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 (3) के उल्लंघन को सही नहीं ठहराया जा सकता। – न्यायमूर्ति अजय भनोट

क्या था मामला?

याची सौम्या तिवारी कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी, कानपुर (डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय लखनऊ से संबद्ध) बीेटेक की छात्रा है। प्रसव अवस्था में होने से वह विश्वविद्यालय की नियमित तौर पर होने वाली परीक्षाओं में शामिल नहीं हो सकी। विश्वविद्यालय की ओर से परीक्षा में शामिल होने के लिए उसे दो बार अतिरिक्त मौका दिया गया, लेकिन प्रसवोत्तर परेशानी की वजह से वह अतिरिक्त मौके का लाभ नहीं उठा सकी। 22 दिसंबर 2020 को उसने बच्चे को जन्म दिया।पूरी तरह से स्वस्थ होने के बाद उसने विश्वविद्यालय प्रशासन से अपनी परेशानियों को बताते हुए परीक्षा देने के लिए अतिरिक्त अवसर की मांग की, लेकिन कॉलेज प्रशासन ने इस मांग को स्वीकार नहीं किया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक अतिरिक्त मौका देने से इनकार कर दिया। कहा कि उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय अधिनियम-2000 अध्यादेश के अंतर्गत मातृत्व अवकाश या गर्भवती और नई माताओं के लिए कोई छूट देने का कोई प्रावधान नहीं है। छात्रा ने इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी को जारी किए निर्देश

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ही मिनिस्ट्री ऑफ एजूकेशन डिपार्टमेंट ऑफ हॉयर एजूकेशन, यूजीसी डिवीजन और यूजीसी की ओर से इस संबंध में सभी उच्च शैक्षणिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों, कॉलेजों को पत्र जारी कर मातृत्व अवकाश और उससे जुड़े लाभों के संबंध में नियम बनाने के निर्देश दिए हैं।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने जारी किए निर्देश

याची ने याचिका में केंद्र सरकार और यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) को पक्षकार नहीं बनाया था, लेकिन सुनवाई केदौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार और यूजीसी को भी पक्षकार बनाने का निर्देश दिया। इसके बाद कोर्ट ने केंद्र सरकार और यूजीसी से भी इस मामले में जवाब मांगा था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता पारस नाथ राय ने कोर्ट को बताया कि मामले में केंद्र सरकार की ओर से 13 दिसंबर और यूजीसी की ओर से 14 दिसंबर को सभी उच्च शैक्षणिक संस्थानों को निर्देश जारी कर दिए गए हैं। कोर्ट ने इसे रिकॉर्ड पर लिया और अपने फैसले में शामिल करते हुए केंद्र सरकार के रुख की सराहना भी की। 


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