शिक्षा लाभ कमाने का कारोबार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

एमबीबीएस फीस 7 गुना बढ़ाने का आदेश खारिज, कॉलेज और आंध्र सरकार को देना होगा पांच लाख मुकदमा खर्च

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिक्षा मुनाफा कमाने का कारोबार नहीं है और शिक्षण शुल्क (ट्यूशन फीस) हमेशा वहन करने योग्य होना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने इसके साथ मेडिकल कॉलेजों की ट्यूशन फीस बढ़ाने के आंध्र प्रदेश सरकार के फैसले को खारिज करने वाले आंध्र हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने इस मामले में याचिकाकर्ता नारायणा मेडिकल कॉलेज और आंध्र प्रदेश सरकार पर पांच लाख रुपये का मुकदमा खर्च भी लगाया। इसे सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री में अगले छह सप्ताह में जमा करना होगा। पीठ ने कहा, ट्यूशन फीस को पहले के मुकाबले सीधे सात गुणा बढ़ा देना न्यायोचित नहीं है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ‘आंध्र प्रदेश प्रवेश और शुल्क नियामक समिति नियम 2006″ के प्रावधानों के अनुसार कोई भी शुल्क वृद्धि समिति की सिफारिशों या रिपोर्ट के बिना नहीं हो सकती।

24 लाख रुपये सालाना कर दी थी मेडिकल शिक्षा फीस

हाईकोर्ट ने एमबीबीएस छात्रों की ट्यूशन फीस बढ़ाकर 24 लाख रुपये सालाना करने के आंध्र प्रदेश सरकार के फैसले को रद कर दिया था। मेडिकल कॉलेज और राज्य सरकार ने इस फैसले को शीर्ष कोर्ट में चुनौती दी थी।

फीस बढ़ाने से पहले कई कारकों पर विचार करना जरूरी

शीर्ष कोर्ट ने कहा कि शुल्क के पुनर्निर्धारण के लिए प्रवेश और शुल्क नियामक समिति की प्रोफेशनल इंस्टीटयूट की अवस्थिति, प्रोफेशनल कोर्स की प्रकृति, उपलब्ध इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे कई कारकों पर विचार करना होता है। पीठ ने कहा, इन कारणों को ध्यान में रखते हुए दोनों ही अपील खारिज की जाती हैं।

वसूली गई राशि भी लौटानी होगी:

छात्रों से वसूली गई राशि के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कॉलेज प्रबंधन को वसूली गई राशि को अपने पास रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा, मेडिकल कॉलेज सरकार के अवैध आदेश का फायदा उठाने वाले थे, जिसे हाईकोर्ट ने सही तौर पर खारिज कर दिया है।

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