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सूचना देने में फिसड्डी हैं कई सरकारी महकमे,मुख्यमंत्री कार्यालय ने समीक्षा कर जताई नाराज़गी


निर्धारित समय में सूचनाओं के निस्तारण के निर्देश,आनलाइन पोर्टल पर दर्जनों विभाग ने शुरू ही नहीं किया काम

कर्मचारी राज्य बीमा योजना निदेशालय कानपुर सबसे फिसड्डी,नेडा सूचना न देने पर दूसरे नंबर पर

लखनऊ:केंद्र सरकार की तर्ज पर आरटीआई एक्ट के तहत सूचना देने के लिए यूपी में बनाए गए आनलाइन पोर्टल पर सरकारी महकमे काम ही नहीं कर रहे। मुख्यमंत्री की समीक्षा में पाया गया है कि तमाम विभागों में या तो आवेदनों के सैकड़ों मामले लंबित है या फिर अपील के प्रकरण में जवाब ही नहीं दिया जा रहा। ऐसे में मुख्यमंत्री कार्यलय ने सभी विभागों के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि मांगी गई सूचनाओं के जवाब में देरी कतई न की जाए। सभी सूचनाएं तय समय में दी जाएं।यूपी में एनआईसी की मदद से आनलाइन सूचनाएं देने के लिए वेब पोर्टल https://rtionline.up.gov.in बनाया गया है। सरकार की मंशा थी कि इसके जरिये केंद्र में लागू आनलाइन व्यवस्था के तहत यूपी में भी बेहतर तरीके से सूचनाएं दी जा सकेंगी।

इसके लिए सभी विभागों में नोडल जन सूचना अधिकारी नामित किए गए। साथ ही उन्हें यूजर्स आईडी पासवर्ड दिया गया। अप्रैल में मुख्यमंत्री कार्यलय ने इसकी समीक्षा की तो सभी हैरत में पड़ गए। समीक्षा में पाया गया कि जनसूचना अधिकारियों ने उक्त पोर्टल पर या तो कार्य प्रारंभ ही नहीं किया और यदि किया है तो लंबित आवेदन की संख्या 20 फीसदी से अधिक और अपीलों के लंबित प्रकरण 40 फीसदी से अधिक हैं।

नेडा में 94 फीसदी जनसूचनाएं लंबित

सबसे खराब स्थिति तो कर्मचारी राज्य बीमा योजना निदेशालय कानपुर की है, वहां 100 फीसदी आवेदन और उनकी अपीलें लटकी पड़ी हैं। आवेदनों की बात करें तो दूसरे नंबर पर प्राकृतिक ऊर्जा विकास एजेंसी (नेडा) में 94 फीसदी और बेसिक शिक्षा में 93 फीसदी मामले लंबित हैं। यही नहीं आयुर्वेद एवं यूनानी निदेशालय में 86, उच्च शिक्षा में 84, उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन में 89, उद्यान और खाद्य प्रसंस्करण निदेशालय 70, कृषि निदेशालय 74, पेंशन निदेशालय में 66 फीसदी मामले लंबित हैं।

इन विभागों में लंबित आवेदन

प्रादेशिक सहकारी डेयरी फेडरेशन -88 फीसदी

राज्य नियोजन संस्थान -88 फीसदी

संस्कृति निदेशालय -100 फीसदी

बेसिक शिक्षा परिषद -93 फीसदी

मध्यांचल विद्युत वितरण निगम–64 फीसदी

स्थानीय निकाय निदेशालय–60 फीसदी


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