छात्र दे रहे जान, गलती कहां कर रहे संस्थान: सीजेआई, CJI ने कहा बंद हो छात्रों में जाति आधारित भेदभाव

जस्टिस चंद्रचूड़ ने जताई चिंता, कहा- समाधान के लिए समस्या को स्वीकारना जरूरी

हैदराबाद। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने छात्रों के आत्महत्या करने की घटनाओं पर चिंता जताते हुए कहा कि जानना चाहिए कि हमारे शैक्षिक संस्थान कहां गलती कर रहे है, जिससे छात्रों को जान देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, हाशिये वाले समुदायों से लोगों के खुदकुशी करने की घटनाएं आम होती जा रही हैं।

द नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च में शनिवार को दीक्षांत समारोह में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, देश में जजों की कोर्ट के अंदर व बाहर समाज के साथ संवाद में अहम भूमिका होती है, ताकि सामाजिक बदलाव पर जोर दिया जा सके।

संवेदनशीलता जरूरी:

सीजेआई ने कहा कि सिर्फ पाठ्यक्रम में छात्रों के प्रति करुणा की भावना पैदा करनी चाहिए, बल्कि अकादमिक नेतृत्व को भी उनकी चिंताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। आजादी के बाद 75 ने कहा, न सिर्फ पाठ्यक्रम में छात्रों साल से हमारा ध्यान प्रतिष्ठित से जुड़ा है। प्रतिष्ठित संस्थान’ बनाने पर था, पर इससे भी अधिक, हमें ‘सहानुभूति के संस्थान’ की जरूरत है भेदभाव का मुद्दा सीधे संस्थानों में सहानुभूति की कमी से जुड़ा है।

गुजरात के रहने वाले प्रथम वर्ष के छात्र दर्शन सोलंकी ने 12 फरवरी को आईआईटी बॉम्बे में आत्महत्या कर ली थी।

राजस्थान के कोटा में नोट की तैयारी कर रहे यूपी के बदायूँ निवासी अभिषेक यादव (17) ने शुक्रवार को जान दे दी थी।

“हाशिये पर रहने वाले समुदायों से आत्महत्या की घटनाएं आम हो रही हैं। ये संख्याएं सिर्फ आंकड़े नहीं है। ये कभी-कभी सदियों के संघर्ष की कहानियों है। मेरा मानना है कि अगर हम इस मुद्दे को हल करना चाहते हैं, तो पहला कदम है समस्या को पहचानना और स्वीकार करना मैं क्कोलों की मानसिक सेहत पर जोर देता रहा हूं, उतना ही महत्वपूर्ण छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य भी है।” -जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, मुख्य न्यायाधीश

बंद हो छात्रों में जाति आधारित भेदभाव

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, प्रत्येक संस्थान को दलित व आदिवासी छात्रों के जाति आधारित भेदभाव रोकने चाहिए। प्रवेश के अंकों के आधार पर छात्रावासों का आवंटन जाति आधारित अलगाव की और ले जाता है। सामाजिक श्रेणियों के साथ अंकों की सार्वजनिक सूची बनाना, दलित व आदिवासी छात्रों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने के लिए उनके अंक मांगना, उनकी अंग्रेजी और शारीरिक छवि का मजक बनाने को रोकना चाहिए। रूढ़िवादिता को सामान्य बनाने जैसी बुनियादी चीजें हर संस्थान को बंद करनी चाहिए।


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