नाम में परिवर्तन करना मौलिक अधिकार नहीं: हाई कोर्ट
नाम में परिवर्तन करना मौलिक अधिकार नहीं : हाई कोर्ट
नाम बदलने को मौलिक अधिकार करार देने वाले एकल पीठ के आदेश को खंडपीठ ने पलटा
प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि अपने नाम में परिवर्तन करना व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं है। यह नियमों के अधीन है। यह केंद्र तथा राज्य सरकार की नीतियों के अनुसार संचालित होगा। याची द्वारा अपना नाम शाहनवाज से बदल कर मो. समीर राव करने की मांग के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार की विशेष अपील पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने इस निर्णय के साथ एकल पीठ द्वारा नाम परिवर्तन करने को मौलिक अधिकार करार देने वाले निर्णय को रद्द कर दिया है।
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एकल पीठ ने 25 मई 2023 के आदेश से यूपी बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक के उसे आदेश को रद्द कर दिया था जिसमें उन्होंने याची शाहनवाज का नाम परिवर्तित करने का प्रार्थना पत्र रद्द कर दिया था। यूपी बोर्ड का कहना था कि नियमानुसार नाम परिवर्तन के लिए आवेदन 3 साल के भीतर ही किया जाना चाहिए।
एकल पीठ ने यूपी बोर्ड के इस नियम को मनमाना और असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि अपनी पसंद का नाम रखना व्यक्ति का अनुच्छेद 21 व 19 में मौलिक अधिकार है। यूपी बोर्ड के नियम इन मूल अधिकारों से सुसंगत नहीं है, इसलिए यह संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है। एकल पीठ में यांची शाहनवाज का नाम बदलकर मो. समीर राव करने और उसके हाई स्कूल व इंटरमीडिएट सहित अन्य सभी प्रमाण पत्रों ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, आधार कार्ड पर नया नाम अंकित करने का निर्देश दिया था। प्रदेश सरकार की ओर से इस आदेश को विशेष अपील दाखिल कर चुनौती दी गई थी। राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने कई दलीलें दी। उनका कहना था की मौलिक अधिकार निर्बाध नहीं है तथा इन पर कुछ सुसंगत प्रतिबंध भी हैं। उन्होंने कहा कि नाम का परिवर्तन करना यूपी बोर्ड के 1921 एक्ट के अध्याय 12 द्वारा नियमित व संचालित होता है। इसलिए नाम में परिवर्तन 7 साल के बाद स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इसका प्रावधान रेगुलेशन 7 के चैप्टर 3 में दिया गया है।