चार चरण में काउंसलिंग होने के बाद भी 90 हजार से ज्यादा सीटें बच गईं
22 से पूल काउंसलिंग शुरू होनी है,ज्यादातर प्राइवेट कॉलेजों को सीधे प्रवेश का ही सहारा
लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा प्रदेश स्तर पर कराए जा रहे बीएड दाखिले की प्रक्रिया में काउंसलिंग के चार राउंड पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब भी सीटें खाली बची हुई हैं। चार चरणों में एक लाख 31 हजार सीटें अभ्यर्थियों को एलॉट की गई हैं, जबकि अभ्यर्थी कुल पांच लाख 91 हजार हैं। वहीं कुल सीटें दो लाख 25 हजार हैं।बीएड में सरकारी कॉलेजों की सीटें केवल 7-8 हजार ही हैं। बाकी सहायता प्राप्त या फिर प्राइवेट कॉलेजों की हैं। सरकारी कॉलेजों की सारी सीटें तो पहले ही राउंड में भर गईं और सहायता प्राप्त भी लगभग फुल हो चुकी हैं। बची सीटें प्राइवेट कॉलेजों की हैं, जहां मनमाने तरीके से फीस वसूली जाती है। इसीलिए इन कॉलेजों में दाखिला लेने से अभ्यर्थी कतराते हैं। उधर कॉलेजों की बात करें तो कई ऐसे भी हैं, जहां काउंसलिंग के चार राउंड होने के बाद भी एक भी सीट किसी अभ्यर्थी को एलॉट नहीं हुई है। इन कॉलेजों को अब सीधे प्रवेश का ही सहारा है, क्योंकि इनके मुताबिक पूल काउंसलिंग से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ने वाला।
22 से शुरू होनी है पूल काउंसलिंग
राज्य बीएड प्रवेश समन्यवक प्रो. अमिता बाजपेई के अनुसार, चार राउंड में जिन अभ्यर्थियों को सीट एलॉट की गई है, यदि वे बैलेंस फीस जमा नहीं करते हैं तो उनका एलॉटमेंट रद्द हो जाएगा। ऐसे में पूरी संभावना है कि जितनी सीटें अभी तक एलॉट हो चुकी हैं, उनमें से भी कुछ बच जाएं, क्योंकि कई ऐसे अभ्यर्थी हैं जिन्होंने काउंसलिंग तो करवा ली लेकिन दाखिला नहीं ले रहे हैं।
कब कितनी सीटें एलॉट हुईं
◆ पहले चरण में- 30031
◆ दूसरे चरण में- 41563
◆ तीसरे चरण में- 38841
◆ चौथे चरण में- 21406
★ कुल- 131,841
कुल अभ्यर्थी- पांच लाख 91 हजार
कुल सीट- दो लाख 25 हजार
कितनी सीटें एलॉट हुईं: 131,841
बचीं सीटें- 93159
टॉपर ने ही नहीं लिया दाखिला
बीएड प्रवेश परीक्षा-2021 में टॉप करने वाले लखनऊ के आशू राणा ने ही बीएड में दाखिला नहीं लिया है। दरअसल आशू को आईआईएम बंगलुरु में एक फेलोशिप मिली है, जिसके तहत वह दो साल तक वहां रहकर पढ़ाई व ट्रेनिंग करेंगे, उसके बाद ग्रामीण इलाकों में विकास कार्यों के लिए काम करेंगे। आशू कहते हैं कि वह हमेशा से ग्रामीण इलाकों के लिए कुछ करना चाहते थे, इसीलिए बीएड प्रवेश परीक्षा दी थी, ताकि शिक्षक बनकर वहां के बच्चों को पढ़ सकें। उनका कहना है कि अब जब गांवों में काम करने के लिए बीएड से अच्छा मौका उन्हें मिल गया है तो बीएड क्यों करना। सीटें खाली रह जाने का एक कारण यह भी है कि कई अभ्यर्थियों ने दूसरे विकल्प भी खुले रखे थे, इसलिए जिसे बेहतर मौका मिला, उसने बीएड छोड़ दिया।