दो अखबारों में भर्ती विज्ञापन का प्रावधान शिक्षक भर्ती के लिए
दो अखबारों में भर्ती विज्ञापन का प्रावधान शिक्षक भर्ती के लिए
प्रयागराज:-इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि राज्य में व्यापक प्रसार वाले दो समाचार पत्रों में भर्ती विज्ञापन देने का प्रावधान शिक्षक भर्ती के लिए निर्धारित किया गया है। लिपिक भर्ती में यह लागू नहीं होगा।कोर्ट ने कहा कि इंटरमीडिएट एजुकेशन एक्ट की धारा 16 (ई) में वर्णित प्रदेश में व्यापक प्रसार वाले दो अखबारों में भर्ती विज्ञापन की शर्त लिपिक एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की भर्ती पर लागू नहीं है। ये भर्तियां रेग्युलेशन 100, 101 और 102 के तहत की जाती हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने आजमगढ़ के श्रीपति इंटरमीडिएट कॉलेज में नियुक्त लिपिक अरविंद कुमार यादव की याचिका पर दिया है। इसी के साथ कोर्ट ने डीआईओएस आजमगढ़ को 2004 में प्रबंध समिति द्वारा लिपिक नियुक्ति का वित्तीय अनुमोदन देने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने लिपिक की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए डीआईओएस का वित्तीय असहमति संबंधी 11 जनवरी 2022 का आदेश निरस्त कर दिया। साथ ही याची को वर्ष 2016 से वेतन भुगतान करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि याची की नियुक्ति 2004 में हुई लेकिन वित्तीय अनुमोदन नहीं मिला। डीआईओएस ने अनुमोदन से इनकार करने में 12 साल लगा दिए। देरी के लिए न केवल डीआईओएस जिम्मेदार है, बल्कि याची व प्रबंध समिति ने भी अपने अधिकारों के लिए कोर्ट की शरण नहीं ली। 2016 में इनकार के बाद कोर्ट आए।याचिका में बताया गया कि याची को डीआईओएस के अनुमोदन के बाद विद्यालय प्रबंध समिति ने वर्ष 2004 में नियुक्त किया था। जिसका स्थानीय अखबार में विज्ञापन दिया गया था। भर्ती के छह आवेदन आए थे लेकिन डीआईओएस ने वित्तीय अनुमोदन नहीं दिया और 12 साल बाद 2016 में वित्तीय स्वीकृति प्रदान करने से इनकार कर दिया।
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डीआईओएस के आदेश को चुनौती देते हुए याची ने वर्ष 2016 में याचिका की, जिस पर कोर्ट ने डीआईओएस को पुनः मेरिट पर आदेश करने का निर्देश दिया था। डीआईओएस ने दूसरी बार भी नए आधार पर वित्तीय स्वीकृति प्रदान करने में असमर्थता जताई।विभाग ने प्रति शपथपत्र में कहा कि विद्यालय प्रबंध समिति ने लिपिक भर्ती का विज्ञापन मात्र एक स्थानीय समाचार पत्र में प्रकाशित किया है। स्थायी अधिवक्ता ने कहा कि विभाग के आदेश के बाद भी याची टंकण परीक्षा देने डीआईओएस कार्यालय नहीं पहुंचा। इस पर याची की ओर से कहा कि वर्ष 2004 में याची का चयन टंकण परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही किया गया था। कोर्ट ने कहा कि डीआईओएस ने अपने प्रति शपथपत्र में यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि याची की नियुक्ति को वित्तीय सहमति प्रदान करने का प्रकरण 12 साल तक क्यों लंबित रखा गया।डीआईओएस ने 2016 में अपने पहले आदेश में विज्ञापन पर कोई आपत्ति अंकित नहीं की थी। लिपिक पद पर 2004 में चयन के बाद न तो याची के द्वारा और न ही विद्यालय प्रबंधन समिति द्वारा वित्तीय सहमति प्राप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाए गए। याची ने भी डीआईओएस के वर्ष 2016 के आदेश के बाद ही कोर्ट का रुख किया।